जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
कविताएँ लिखता जाता हूँ – Poets Are Prophets

जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
रश्मि-रंजित धवल तन पर रेशमी परिधान तेरा ये मधुर मुस्कान तेरी फिर सुरीला गान तेरा लग रहा है दैव ने है स्वर्ग से तुमको उतारा। आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
थी कमान पर लक्ष्यहीन थी दुविधा से आँखे मलीन थीं तरकस में बेकार पड़े इन तीरों को संधान मिला है। मुझको अद्भुत ज्ञान मिला है।।
जिंदगी के रास्तों पर सैकडों दुश्वारियां हैं मुश्किलों से जूझने की क्या तेरी तैयारियाँ हैं पथ जरा समतल मिला तुम भूल बैठे कंटकों को लक्ष्य को पाने से पहले लाख जिम्मेदारियां हैं धैर्य खोकर चाहते हो भाग्य का चमके सितारा। रेत पर पदचिह्न तेरे और सागर का किनारा।।
जिसकी छाँव तले अपने पैरों पे चलना सीखा था, जिसकी गोदी में गिरने के बाद संभलना सीखा था, मेरे छुटपन के हर क्षण का, हर घटना का साखी था, वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।
मातृभूमि का कर्ज चढ़ा था उसको आज उतार चला तेरा साथ न दे पाया हूँ अब ये कर्ज़ उधार रहा बाकी है जो भी हिसाब सब अगले जन्म में कर लेना मैं कतरा-कतरा टपकूंगा, तुम अंजलि में भर लेना।
शहरों को छोड़ गाँव मे आने लगे हैं लोग नुक्कड़ पे अपनी धाक जमाने लगें हैं लोग। सुनता हूँ आ गया है, चुनाव का मौसम अब दावतें मजे से उड़ाने लगें हैं लोग।
गिरिराज हिमालय नहीं रहा गंगा की धार बहे कैसे? छल-दंभ-द्वेष से घिरा हृदय भावों की धार सहे कैसे? ना कोई प्रतिकार बचा है ना कोई प्रतिबंध हमारा शब्दकोष खाली खाली है मूक खड़ा है छंद हमारा।
यूँ सुराही दिखाने से क्या फायदा प्यास मेरी बढ़ाने से क्या फायदा तेरी बोतल कुछ भी नशा ही नहीं जाम पीने-पिलाने से क्या फायदा।
घर ही में बीवियों से खुराफ़ात सीखिए, कैसे करेंगे बॉस को बर्दास्त, सीखिए, बढ़ता है लॉक डाउन जो तो बढ़ने दीजिए, कूकिंग व राजनीति एक साथ सीखिए