जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
कविताएँ लिखता जाता हूँ – Poets Are Prophets

जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
न पूछ रात-रात भर यूँ जाग करके क्या मिला किसी को रौशनी मिली किसी को हौसला मिला जो सींच भाव की जमीन स्वप्न बीज बो गया ऊगा के प्रेरणा का पेड़ अंतरिक्ष हो गया जो छोड़ कर अमिट निशान व्योम में सिधारता। विचार के धनी मनुष्य को जहाँ दुलारता।।
वादे झूठे, कसमें झूठीं, झूठा प्रेम निभाया फिर भी न जानें, क्यों नहीं माने, ऐसा दिल भरमाया दिल की बातें, दिल ही जाने, कौन इसे समझाए जीवन-पथ पर, धीरे-धीरे, राही पाँव बढ़ाए
माना मैं चलने वाला हूँ, संग तेरे दौड़ नहीं सकता, अपने जज़्बाती गीतों को सिक्कों से तौल नहीं सकता, मैं न भी रहा, ये गीत फिजाओं में घुलकर रह जाएंगे, ये तान तुम्हारे कानों से जिस दिन भी टकरा जाएंगे, मुझको ठुकराया था तूने, 'उस' गलती पर पछताएगी, वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आयेगी...
कवि की आग कोई घर नहीं, शमां जलाती है। जो कोई ख्वाब हो सोया, कलम उसको जगाती है, कोई जब साँस लेता है, हवाएँ चलनें लगतीं हैं, मैं जब भी आह भरता हूँ, मजा दुनियां उठाती है।
लो सपथ, अभी चल संग मेरे, हमको यह कर्ज़ चुकाना है, यदि भारत माँ के हम सपूत, तो अपना फर्ज़ निभाना है। इस ऊँच-नीच की खाई को, करके कोशिश, भरना होगा, जिस मिट्टी में जीते आए, उसकी खातिर मरना होगा।