मेरे बचपन का साथी था – गीत

जिसकी छाँव तले अपने पैरों पे चलना सीखा था, जिसकी गोदी में गिरने के बाद संभलना सीखा था, मेरे छुटपन के हर क्षण का, हर घटना का साखी था, वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

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तुम अंजलि में भर लेना – देशभक्ति गीत

मातृभूमि का कर्ज चढ़ा था उसको आज उतार चला तेरा साथ न दे पाया हूँ अब ये कर्ज़ उधार रहा बाकी है जो भी हिसाब सब अगले जन्म में कर लेना मैं कतरा-कतरा टपकूंगा, तुम अंजलि में भर लेना।

शहरों को छोड़ गाँव मे आने लगे हैं लोग – गीतिका

शहरों को छोड़ गाँव मे आने लगे हैं लोग नुक्कड़ पे अपनी धाक जमाने लगें हैं लोग। सुनता हूँ आ गया है, चुनाव का मौसम अब दावतें मजे से उड़ाने लगें हैं लोग।

मूक खड़ा है छंद हमारा – गीत

गिरिराज हिमालय नहीं रहा गंगा की धार बहे कैसे? छल-दंभ-द्वेष से घिरा हृदय भावों की धार सहे कैसे? ना कोई प्रतिकार बचा है ना कोई प्रतिबंध हमारा शब्दकोष खाली खाली है मूक खड़ा है छंद हमारा।

घर ही में बीवियों से खुराफ़ात सीखिए – हास्य मुक्तक

घर ही में बीवियों से खुराफ़ात सीखिए, कैसे करेंगे बॉस को बर्दास्त, सीखिए, बढ़ता है लॉक डाउन जो तो बढ़ने दीजिए, कूकिंग व राजनीति एक साथ सीखिए

बुरा न मानों होली है

होली में बौराय के डिम्पल भौजी करें ठिठोली, देख अकेले जोगी जी ने रंग दी घघरा-चोली, रंग दी घघरा-चोली भगवा रंग अब मुझको भाय, अबकी बारी टिकट दिला दो, कुछ तो करो उपाय

जीवन-पथ पर, धीरे-धीरे, राही पाँव बढ़ाए – एक गीत

वादे झूठे, कसमें झूठीं, झूठा प्रेम निभाया फिर भी न जानें, क्यों नहीं माने, ऐसा दिल भरमाया दिल की बातें, दिल ही जाने, कौन इसे समझाए जीवन-पथ पर, धीरे-धीरे, राही पाँव बढ़ाए