खुश हुआ कुम्हार मुझको बेचकर बाजार में, पर मुझे डर है की शायद मैं बना बेकार में, कौन पूछेगा मुझे इस चमचमाते शहर में, हे विधाता! कर सकूँगा क्या तेरा सत्कार मैं? काश की मैं भी मना लूँ, कल दीवाली आ रही, ध्वनि पटाखों की मुझे बेचैन करती जा रही, शहर के लोगों सुनो, मेरा भी कुछ सम्मान है, मैं हूँ माटी का दिया, मेरा भी कुछ अरमान है।
मैं हूँ माटी का दिया, मेरा भी कुछ अरमान है – The Wishes Of The Soil Lamp
