मूक खड़ा है छंद हमारा – गीत

गिरिराज हिमालय नहीं रहा गंगा की धार बहे कैसे? छल-दंभ-द्वेष से घिरा हृदय भावों की धार सहे कैसे? ना कोई प्रतिकार बचा है ना कोई प्रतिबंध हमारा शब्दकोष खाली खाली है मूक खड़ा है छंद हमारा।

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वो सुबह कभी तो आयेगी… A Salute To Sahir Ludhianvi Sahab

माना मैं चलने वाला हूँ, संग तेरे दौड़ नहीं सकता, अपने जज़्बाती गीतों को सिक्कों से तौल नहीं सकता, मैं न भी रहा, ये गीत फिजाओं में घुलकर रह जाएंगे, ये तान तुम्हारे कानों से जिस दिन भी टकरा जाएंगे, मुझको ठुकराया था तूने, 'उस' गलती पर पछताएगी, वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आयेगी...

हम दीपक बनकर चमकेंगे – Do what you can

भारत के दर्शन में कवित्त, कविता दर्शन की मूर्त रूप, उपनिषदों, वेद-पुराणों के श्लोकों का है पावन स्वरूप। जो ज्ञानयोग व् कर्मयोग, 'गीता' हमको सिखलाती है, वह वेद व्यास की गाथा है, जिसको दुनिया अपनाती है।

​यह मानवता की नादानी – एक गीत

तुम वीर बनों, बदनाम नहीं, कुछ भी उबाल का नाम नहीं, ऐसा लगता है नस-नस में, लहू नहीं बहता है पानी, यह मानवता की नादानी। जो इक मसाल सी जलती थी, इक क्रांति हृदय में पलती थी, जो रुख मोड़े धाराओं की, खो गयी जवानी तूफानी, यह मानवता की नादानी।

कोई भी तिनका पास नहीं था – You’ve enough power to solve issues

​डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था। लिए हौसला दिल में अपने, साहिल को मैं देख रहा था, 'काम बहुत है बाकी अब भी' हाथ-पांव मैं फेंक रहा था, तट की ज़ानिब तैर रहा था, लहरों का भी साथ नहीं था, डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं … Continue reading कोई भी तिनका पास नहीं था – You’ve enough power to solve issues

​शिशु सदृश हृदय मेरा, कोई नहीं दुलारता – Awake the child within you

मैं हंसीन ख्वाब ले के आ गया शहर मगर, बात अपनी कह सकूँ, मैं फिर रहा इधर-उधर, पर किसे है वक्त जो मुझे भी वक्त दे सके, मुझे सलाह दे सके, मेरी सलाह ले सके, अब मुझे मेरा हंसीन गांव है पुकारता, शिशु सदृश हृदय मेरा, कोई नहीं दुलारता।