चार बेटे छोड़ माँ को जा चुके हैं। या पतन का रास्ता अपना चुके हैं।। कह रही 'वह' आज रिश्तों को 'पहेली'। देख! घर में एक बूढी माँ अकेली।। भार लेकर उस अभागन की खड़ी हूँ। मैं छड़ी हूँ।।
मैं छड़ी हूँ – Stick’s Experience

चार बेटे छोड़ माँ को जा चुके हैं। या पतन का रास्ता अपना चुके हैं।। कह रही 'वह' आज रिश्तों को 'पहेली'। देख! घर में एक बूढी माँ अकेली।। भार लेकर उस अभागन की खड़ी हूँ। मैं छड़ी हूँ।।
कैसे कह दूँ अस्तित्व नहीं अपने पर ही स्वामित्व नहीं हर रोज थपेड़े खाना है झोंकों के पाँव दबाना है मेरा गौरव भिक्षा मांगे पवनों की इच्छा के आगे बस यही बात तड़पाती है घनघोर निराशा लाती है जग में कोई मुझसा न दीन। मैं बादल मेरा मुख मलीन।।
जब भी गीत सुनाना चाहूँ मन की बात बताना चाहूँ बुलबुल टोक मुझे देती है गाकर कोई मधुर तराना। मैं कौवा, मुझको भी गाना।।
किरण चली दुलारने, नए नए विहान को खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को पुकारने लगा विहान, बाग दे रहा समय उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय
था हमारा घर कभी अब खंडहर, फैला अँधेरा खिड़कियों पर घोंसले थे और चिड़ियों का बसेरा चहचहाकर भोर में वो नींद से हमको जगातीं और कलरव साथ लेकर झूमता आता सवेरा खो गए वो हर्ष के छड़ पर बची उनकी निशानी। देख टूटे खंडहर को आ गयीं यादें पुरानी।।
एक बात तुमको बतला दूँ कह दो तो मैं गाँठ लगा दूँ तेरे कारण दुनियाँ छोड़ूँ मुझको यह अधिकार नहीं है। झट से कह दो प्यार नहीं है।।