यूँ सुराही दिखाने से क्या फायदा प्यास मेरी बढ़ाने से क्या फायदा तेरी बोतल कुछ भी नशा ही नहीं जाम पीने-पिलाने से क्या फायदा।
ग़ज़ल
मैंने मां-बाप को मंदिर में बिठा रखा है – ग़ज़ल

अपने घर में ही नया स्वर्ग बना रखा है मैंने मां-बाप को मंदिर में बिठा रखा है
पत्थर में भी फूलों सी नज़ाकत देखी

मैंने पत्थर में भी फूलों सी नज़ाकत देखी पिस के सीमेंट बने, ऐसी शराफ़त देखी थी तेज हवा, उनका आँचल गिरा गई इस शहर ने उस रोज क़यामत देखी
मुझसे इंतकाम न ले – ग़ज़ल

जरा सा हाथ लगा, गिर पड़ा तेरा गमला बात छोटी सी है, तू मुझसे इंतकाम न ले इस गम-ए-हिज़्र को बनने दे तू मेरा कातिल, मुझपे मत तीर चला, सर पे ये इल्ज़ाम न ले
जहन्नुम से ख़बर उड़ने लगी है

जहन्नुम से ख़बर उड़ने लगी है वहाँ पर भीड़ अब बढ़ने लगी है उतरने की कोई सूरत नही है ख़ुमारी इस कदर चढ़ने लगी है
घर चलो दिन ढल गया – Let’s go home

कभी सुबह आके जगा गई, कभी धूप में तन जल गया, कभी शाम ने कहा कान में, चलो घर चलो, दिन ढल गया
दिलों की खाईयाँ पटने लगी हैं – We may united

दिलों की खाईयाँ पटने लगी हैं बहुत थी दूरियाँ, घटने लगी हैं कही तुमने दो बातें साफ दिल से हमारी उलझने मिटने लगी हैं
दिलों में झाँकता, जमीर टटोलता कोई – See the heart’s beauty, not only face
दिलों में झाँकता, जमीर टटोलता कोई, 'बड़ा ही खूबसूरत है' ये बोलता कोई। जिसे भी देखिए चेहरे पे फ़िदा हो जाता, हुस्न की भीतरी परतें भी खोलता कोई।
बाज़ार में अश्कों की कीमत तो देखिए – कलाम-ए-शायर
है मुफ़लिसी का दौर पर हिम्मत तो देखिए, इस शायर-ए-फनकार की मोहब्बत तो देखिए। बिन पंख के ही उड़ने को बेताब किस कदर, नादान परिंदे की हसरत तो देखिए।
अपने ठिकाने आ गए – ‘कलाम-ए-शायर’ – The experience speaks
खुद के जख्मों की नहीं परवाह, हम भी सिरफिरे, दुसरे के घाव पर मरहम लगाने आ गए। इस कदर मशगूल थे, यह जिंदगानी का सफ़र, कुछ पता ही ना चला, अपने ठिकाने आ गए।