छलावा काहे का – चार मुक्तक

देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले मेरी है सरकार, इलाका मेरा है

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अपने ठिकाने आ गए – ‘कलाम-ए-शायर’ – The experience speaks

खुद के जख्मों की नहीं परवाह, हम भी सिरफिरे, दुसरे के घाव पर मरहम लगाने आ गए। इस कदर मशगूल थे, यह जिंदगानी का सफ़र, कुछ पता ही ना चला, अपने ठिकाने आ गए।

खंडहर, भुतहा मकानों में परिंदे छुप गए – ग़ज़ल

खुद तुम्हारे पाँव कीचड़ में सने हैं दरअसल, दूसरों को कायदे-कानून समझाने गए?? एक मुट्ठी फायदे खातिर वहां कश्मीर में, मुल्क में तुम नफरतों की आग भड़कानें गए??

कोई नीलाम होता है – We Want Corruption Free India

​कहीँ पर प्यास होती है, कहीँ पर जाम होता है, यहाँ सत्ता की खातिर रोज कत्ले-आम होता है। कहीँ पर चंद रुपयों के लिए लंबी कतारें हैं, कहीँ अपराधियों का नोट का गोदाम होता है। कहीँ पर पार्टियों पर खर्च का ब्यौरा करोङो में, कहीँ रोटी की खातिर घर कोई नीलाम होता है।

कभी आंधी, कभी बवंडर दिखाई देता है – A New Classification Of Poetry

We may classify the poetry as  1- Serious poetry 2- Semi serious poetry 3- Light poetry With above reference the first one is the outcome of the deep insight of the poet in any subject, incident or any thing else, on the other hand second type starts in light way, may be the imitation of an art. But some times it effects more strongly than serious one, specially when the expressed emotion be naturalized.

तूफ़ान की जानिब – The Journey against Storm

बड़े लोगों की ऊँचाई जो दिखती है, नहीं होती, दिखावे में चले आए हैं जीते, सच छुपाने को। हमीं हैं अन्न के दाता मगर फिर भी हमीं भूखे, किसानों ने कहा मायूस हो, अपने फ़साने को।