देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले मेरी है सरकार, इलाका मेरा है
छलावा काहे का – चार मुक्तक

देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले मेरी है सरकार, इलाका मेरा है
मैंने पत्थर में भी फूलों सी नज़ाकत देखी पिस के सीमेंट बने, ऐसी शराफ़त देखी थी तेज हवा, उनका आँचल गिरा गई इस शहर ने उस रोज क़यामत देखी
जरा सा हाथ लगा, गिर पड़ा तेरा गमला बात छोटी सी है, तू मुझसे इंतकाम न ले इस गम-ए-हिज़्र को बनने दे तू मेरा कातिल, मुझपे मत तीर चला, सर पे ये इल्ज़ाम न ले
कहीं लोग समझे न मैं गुमशुदा हूँ दिया अपने घर मे जलाना पड़ेगा कहीं मेरे अरमां बगावत न कर दें इन्हें दिल में जबरन दबाना पड़ेगा
प्यार की दास्तान, क्या कहना हँस रहा है जहान, क्या कहना
खुद के जख्मों की नहीं परवाह, हम भी सिरफिरे, दुसरे के घाव पर मरहम लगाने आ गए। इस कदर मशगूल थे, यह जिंदगानी का सफ़र, कुछ पता ही ना चला, अपने ठिकाने आ गए।
खुद तुम्हारे पाँव कीचड़ में सने हैं दरअसल, दूसरों को कायदे-कानून समझाने गए?? एक मुट्ठी फायदे खातिर वहां कश्मीर में, मुल्क में तुम नफरतों की आग भड़कानें गए??
कहीँ पर प्यास होती है, कहीँ पर जाम होता है, यहाँ सत्ता की खातिर रोज कत्ले-आम होता है। कहीँ पर चंद रुपयों के लिए लंबी कतारें हैं, कहीँ अपराधियों का नोट का गोदाम होता है। कहीँ पर पार्टियों पर खर्च का ब्यौरा करोङो में, कहीँ रोटी की खातिर घर कोई नीलाम होता है।
We may classify the poetry as 1- Serious poetry 2- Semi serious poetry 3- Light poetry With above reference the first one is the outcome of the deep insight of the poet in any subject, incident or any thing else, on the other hand second type starts in light way, may be the imitation of an art. But some times it effects more strongly than serious one, specially when the expressed emotion be naturalized.
बड़े लोगों की ऊँचाई जो दिखती है, नहीं होती, दिखावे में चले आए हैं जीते, सच छुपाने को। हमीं हैं अन्न के दाता मगर फिर भी हमीं भूखे, किसानों ने कहा मायूस हो, अपने फ़साने को।