तुम्हें याद है मंदिर में जब, हम पहली बार मिले थे तुमनें पलकें थीं झुकाई, अधरों पर फूल खिले थे बस एक झलक ने छेड़ी थी, मेरे दिल का इकतारा मेरे दिल का इकतारा
मुझपर अधिकार तुम्हारा – एक प्रेमगीत

तुम्हें याद है मंदिर में जब, हम पहली बार मिले थे तुमनें पलकें थीं झुकाई, अधरों पर फूल खिले थे बस एक झलक ने छेड़ी थी, मेरे दिल का इकतारा मेरे दिल का इकतारा
जिंदगी का हर सबक, हर उलझनें गीतों में ढाला, चाह थी दुनियां में हो, इंशानियत का बोलबाला, गीत अपने, साथ तेरे गुनगुनाना चाहता हूँ। मैं तुम्हे अपनी सुनाना चाहता हूँ।
लहज़े में है नज़ाकत, आवाज़ में जादू , अब आपको क्योंकर कोई वरदान चाहिए। कुछ यूँ भटक गया है इंसान आज का, माँ-बाप को ठुकराया, भगवान चाहिए।
इस दुनिया की रंगीनी में कुछ श्वेत-श्याम से सपने थे, कुछ रिश्ते थे, कुछ नाते थे, कुछ लोग यहाँ पर अपने थे, जब मैं संकट में घिरा तभी ये भ्रम भी यूँ ही टूट गया, मेरे ढहते इस पर्णकुटी का फिर से जीर्णोद्धार किया है, तुमने मुझको अपनाकर जो प्यार दिया उपकार किया है।