जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
कविताएँ लिखता जाता हूँ – Poets Are Prophets

जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
जब इच्छाएँ मर जातीं हैं घनघोर निराशा छाती है प्रेषित करके शुभ-स्वप्नों को, आशा का दीप जलाता हूँ। मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
दिलों में झाँकता, जमीर टटोलता कोई, 'बड़ा ही खूबसूरत है' ये बोलता कोई। जिसे भी देखिए चेहरे पे फ़िदा हो जाता, हुस्न की भीतरी परतें भी खोलता कोई।
दर्दे-दिल बर्दाश्त की तो हद हुई, चुप रहूँ कैसे मैं अब तो हद हुई। तेरी ज़ानिब और कोई देखता, और मैं हूँ शांत ये तो हद हुई। जेब में सिक्का न हो, मैं दावते दूँ? बस करो, इंसानियत की हद हुई।