देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले मेरी है सरकार, इलाका मेरा है
छलावा काहे का – चार मुक्तक

देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले मेरी है सरकार, इलाका मेरा है
घर ही में बीवियों से खुराफ़ात सीखिए, कैसे करेंगे बॉस को बर्दास्त, सीखिए, बढ़ता है लॉक डाउन जो तो बढ़ने दीजिए, कूकिंग व राजनीति एक साथ सीखिए
अजब सी आग जलती है कि दिल की बात न पूछो, धुआँ आने लगा बाहर, मेरे हालात न पूछो, कहीँ ऐसा न हो की तुम झुलस जाओ करीब आकर, बस अपनी बात कह दो पर मेरे जज़्बात न पूछो।
आदमी, आदमी को ही डंसते रहे, दलदलों में सियासी, वो धंसते रहे, मैं दिखाता रहा अपना दिल चीरकर, दर्दे-दिल कह दिया, आप हंसते रहे।
कोई बर्बाद होता है, यहाँ महफूज़ बैठे हो, चुराए नोट गिनने में इधर मशरूफ बैठे हो, लड़ाई रोटियों की है, गरीबी का ये आलम है, डिनर के बाद हाथों में लिए तुम जूस बैठे हो।
बहुत ऊँची ईमारत है तेरी, किरदार छोटा है, तुम्हें लोगों से क्या मतलब, तेरा व्यवहार छोटा है, जुटा ली है करोङो की अगर दौलत चुरा करके, तुम्हारी सोच छोटी है, दिल-ए-बाजार छोटा है।