किरण चली दुलारने, नए नए विहान को खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को पुकारने लगा विहान, बाग दे रहा समय उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय
प्रभात-सौंदर्य – Morning Beauty

किरण चली दुलारने, नए नए विहान को खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को पुकारने लगा विहान, बाग दे रहा समय उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय
देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले मेरी है सरकार, इलाका मेरा है
जब-जब अंतर अकुलाता है भावों की धार बहाता है मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ। कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
न पूछ रात-रात भर यूँ जाग करके क्या मिला किसी को रौशनी मिली किसी को हौसला मिला जो सींच भाव की जमीन स्वप्न बीज बो गया ऊगा के प्रेरणा का पेड़ अंतरिक्ष हो गया जो छोड़ कर अमिट निशान व्योम में सिधारता। विचार के धनी मनुष्य को जहाँ दुलारता।।
फूलों को समझा कर हारा रंग रूप पर मत इतराना सब तुमसे मतलब साधेंगे पड़े न तुमको अश्रु बहाना स्वाभिमान के हेतु धरा पर कुछ कठोरता भी अपनाओ छोटा सा कांटा हूँ तो क्या मत मुझको तुम पैर लगाओ।।
दिवावसान हो गया सफर में रात ढल गयी कराल काल आ गया तो जिंदगी बदल गयी मगर घने अंधेर में जो रौंद शूल बढ़ गया समस्त विश्व के लिए नई मिसाल गढ़ गया बढ़े प्रवाह के विरुद्ध हाथ-पाँव मारता। उसी महाविभूति को जहान है दुलारता।।
जब इच्छाएँ मर जातीं हैं घनघोर निराशा छाती है प्रेषित करके शुभ-स्वप्नों को, आशा का दीप जलाता हूँ। मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
था हमारा घर कभी अब खंडहर, फैला अँधेरा खिड़कियों पर घोंसले थे और चिड़ियों का बसेरा चहचहाकर भोर में वो नींद से हमको जगातीं और कलरव साथ लेकर झूमता आता सवेरा खो गए वो हर्ष के छड़ पर बची उनकी निशानी। देख टूटे खंडहर को आ गयीं यादें पुरानी।।